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Showing posts from April, 2017
"दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है जॉन स्टुअर्ट मिल की उस चेतावनी को ध्यान में रखना, जो उन्होंने उन लोगों को दी है, जिन्हें प्रजातंत्र को बनाए रखने में दिलचस्पी है, अर्थात् ''अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए ।" उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं है, जिन्होंने जीवनर्पयंत देश की सेवा की हो । परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं । जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ''कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता ।" यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता । धर्म के क्षेत्र में भक्त
कवि के संग्रह से - 116 --------------------------------- * मुझे क़दम-क़दम पर / गजानन माधव मुक्तिबोध * मुझे क़दम-क़दम पर चौराहे मिलते हैं बाँहे फैलाए!! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ; बहुत अच्छे लगते हैं उनके तज़ुर्बे और अपने सपने... सब सच्चे लगते हैं; अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है, मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए!! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है; हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है, प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है, मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीड़ा है, पलभर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ, प्रत्येक उर में से तिर जाना चाहता हूँ, इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ, अजीब है ज़िन्दगी!! बेवकूफ़ बनने के ख़ातिर ही सब तरफ़ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ; और यह सब देख बड़ा मज़ा आता है कि मैं ठगा जाता हूँ... ह्रदय में मेरे ही, प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है, कि जगत्...स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियाँ लेकर और मुझको कुछ देकर ये