काका !
तुम्हारी आँखों में,
आशाओं का
अंबार क्यूँ दिखता है!

जबकि तुम्हें पता है,
कि तुम्हारी आशाओं से
'उनपर' कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
न तब - न अब ।
                        -✍शुभम्

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