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RepublicDay विविधताओं से भरे हमारे भारत देश में गणतंत्र दिवस बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और छोटे-छोटे बच्चों विशेषकर ग्रामीणांचल के बच्चों में इसे लेकर एक अलग ही उत्साह दिखता है। 26 जनवरी की पूर्वसंध्या को ही ये बच्चे गाँव-मेड़-खेत-खलिहान में दिखने वाले फूलों पर नजर रख लेते हैं और सुबह होते ही फूल चुन-चुन करके इकट्ठा करते हैं ; और फिर सज धज कर, उछलते-कूदते हुए कुछ बच्चों के हाथों में तिरंगा लिए तो कुछ के सर पर तिरंगे वाली टोपी; पहुंच जाते हैं अपने स्कूल। गीत,नृत्य,जयकारे एवं ज्ञानवर्द्धक बातों के साथ ही मिठाई का मज़ा । बच्चे देखते सुनते सीखते हुए शिक्षा को प्राप्त करें और बेहतर भारत के निर्माण की ओर बढ़ते रहें। यह हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य की प्रमुख जिम्मेदारी है। अगर एक भी बच्चा छूटा । तो विकास हमसे रूठा ।।                                      जय हिंद जय भारत                                      ✍शुभम् पाण्डेय
काका ! तुम्हारी आँखों में, आशाओं का अंबार क्यूँ दिखता है! जबकि तुम्हें पता है, कि तुम्हारी आशाओं से 'उनपर' कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। न तब - न अब ।                         -✍शुभम्
"दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है जॉन स्टुअर्ट मिल की उस चेतावनी को ध्यान में रखना, जो उन्होंने उन लोगों को दी है, जिन्हें प्रजातंत्र को बनाए रखने में दिलचस्पी है, अर्थात् ''अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए ।" उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं है, जिन्होंने जीवनर्पयंत देश की सेवा की हो । परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं । जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ''कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता ।" यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता । धर्म के क्षेत्र में भक्त
कवि के संग्रह से - 116 --------------------------------- * मुझे क़दम-क़दम पर / गजानन माधव मुक्तिबोध * मुझे क़दम-क़दम पर चौराहे मिलते हैं बाँहे फैलाए!! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ; बहुत अच्छे लगते हैं उनके तज़ुर्बे और अपने सपने... सब सच्चे लगते हैं; अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है, मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए!! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है; हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है, प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है, मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीड़ा है, पलभर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ, प्रत्येक उर में से तिर जाना चाहता हूँ, इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ, अजीब है ज़िन्दगी!! बेवकूफ़ बनने के ख़ातिर ही सब तरफ़ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ; और यह सब देख बड़ा मज़ा आता है कि मैं ठगा जाता हूँ... ह्रदय में मेरे ही, प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है, कि जगत्...स्वायत्त हुआ जाता है। कहानियाँ लेकर और मुझको कुछ देकर ये